
NRI Herald
तुम क्यूँ निष्पक्ष रहे !
लोकेश शर्मा जी द्वारा रचित कविता - NRI हेराल्ड हिन्दी ऑस्ट्रेलिया द्वारा प्रकाशित, 21 August 2021
था योद्धा महान ,
बड़ा बलवान ,
नाम हुआ - दाऊ बलराम !
धर्मयुद्ध में निष्पक्ष रहा ,
किसी के ना पक्ष में कहा !
मैं दुर्योधन का गुरु,
कैसे विपक्ष में युद्ध करूँ !
पांडवो का मैं भ्राता ,
कैसे उनके समक्ष रहूँ !
स्वयं केशव युद्ध में ,
धर्म के सारथी बन रहे !
दाऊ तुम क्यूँ निष्पक्ष रहे ?
हे अर्जुन !
शिखंडी को तू ढाल बना ,
फिर युद्ध करने रण में आ !
हूँ वचनबद्ध मैं गंगा पुत्र ,
नारी पर शस्त्र नहीं वारूँगा ,
परन्तु !
तेरे बाणों के प्रहार स्वीकारूँगा !
पितामह भी अपने ही वध की युक्ति कह ,
और बाणों की शैया पर पीड़ा घावों की सह ,
इच्छा मृत्यु जी रहे !
हे दाऊ !
तुम क्यूँ निष्पक्ष रहे ?
चक्रव्यूह के घेरे से ,
हुआ निकलना असंभव !
उस कर्म युद्ध के हवनकुंड में ,
अभिमन्यु भी प्राण आहुति दे रहे !
फिर भी ! फिर भी !
दाऊ तुम निष्पक्ष रहे !
गीता - कर्म ही है श्रेष्ठ,
बस यहीं कहे !
दाऊ तुम क्यूँ निष्पक्ष रहे ?
जीवन की कठिन परिस्थिति ,
है परीक्षा मनुष्य के मनोबल की !
हे हलधर !
विवेक तुम्हारा कहाँ गया ?
अथवा जीवन से क्या मोह हो गया ?
कोई निर्णय क्यूँ नहीं लिए गये ?
अन्ततः प्रश्न बस यही रहे !
दाऊ तुम क्यूँ निष्पक्ष रहे ?
दाऊ तुम क्यूँ निष्पक्ष रहे ?

लोकेश शर्मा जी की पैदाइश दिल्ली और स्कूली शिक्षा हिमाचल प्रदेश की राजकीय पाठशाला से हिंदी माध्यम में प्राथमिक एवम् वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा से है, उसके उपरांत औषधी विज्ञान में स्नातक प्राप्त करके उसी क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया में एक मल्टीनैशनल फार्मा कंपनी में कार्यरत हैं , स्वयं को एक भाषा प्रेमी मानते हैं, हिंदी, उर्दू, डोगरी, बंगाली, हरियाणवी, पंजाबी बखूबी बोल लेते हैं. शब्दों का विश्लेषण कर भाषा को समजने का प्रयास करना पसंद है , मानते है, संस्कृत के ही शब्द हर भाषा में मिलते हैं. गीता ज्ञान को जीवन का मार्ग दर्शक बना के आगे बड़ते है.