
NRI Herald
व्यक्तित्व जीरो का !
Updated: Sep 16, 2021
भारतीय हिन्दी दिवस के शुभ उपलक्ष पे संध्या मिश्रा जी द्वारा रचित एक चुलबुली किन्तु बौद्धिक कविता - NRI हेराल्ड ऑस्ट्रेलिया द्वारा प्रकाशित, 15 September 2021

बात बताती हूँ मैं ,
उस दिन की
जो लगती है,
नामुमकिन-सी
मिल गई थी उस दिन,
चाबी पुराने ताले की !
सोचा चलो करते है,
सफाई इस जाले की।
देखें ,क्या खजाना हाथ लगता है !
दिल दुखी होता है या भाग्य जगता है !
लालच कम था ,
पर चुलबुला मन था।
खोला संदूक ढंग से,थोड़ा उमंग से
मुंगेरीलाल के सपने हुए भंग से !
हार के लौटे मानो किसी जंग से !
न हीरा-मोती ,न कोई जिन्न-हीरो निकला
उफ्फ ये तो ,नाउम्मीद-सा जीरो निकला !!
अपनी बेवकूफी पे ,हँसी आई !
के पीछे से उसने आवाज लगाई।
यूँ न सख्ती से ताको मुझे,
शख़्सियत हूँ बड़ी -
कमतर न आँकों मुझे !
किसी अंक से जुड़ उसका
कद बढ़ा सकता हूँ,
अच्छे-भले का,
ईमान डिगा सकता हूँ।
मैं सकपकाई ,
थोड़ा मुस्कुराई ,
पकड़ शब्दो की गहराई,
फिर यूँ बात बढ़ाई
यकीनन सही,
तेरी जुबानी हैं
लगा अपनी
इक सी कहानी है
बिना अंक जुड़े,
तेरी कोई गणना नही
बिना पुरूष नाम जुड़े ,
मेरा अस्तित्व बढ़ना नही।
जुड़ जाउ तो बेटी,बहन,पत्नी ,बहु और माँ हूँ
न जुड़ पाऊँ तो जीरो समान हूँ,
हर क्षेत्र में मिशाल बनी,
फिर भी वहीं खड़ी।
आगे उसने बात कही,
तेरे तर्क संवाद सही ,
पर मैं जीरो हूँ नगण्य नही,
तू जीव है निर्जीव नही।
मेरे बिना गणित पूरी नही होती,
तेरे बिना दुनिया शुरू नही होती।
थामा है तूने ,परिवार-समाज को
जड़ और नीव बनकर
न अकड़ कर,न तनकर
प्यार से, समझकर।
मेरे अंतर्मन के जौहरी ने ली अंगड़ाई ।
पाकर ज्ञान का रत्न जीरो से ली विदाई।।

संध्या मिश्रा (शुक्ला)
संध्या मिश्रा (शुक्ला) पेशे से सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हैं।
हिंदी भाषा की सहजता और सुंदरता को अपने विचारो की अभिव्यक्ति का बेहतर माध्यम मानती है। विचारो की शृंखला कभी कविता के द्वारा, कभी आलेख, तो कभी कहानी के रूप में अंकित होते रहते इनके किताबों में। लेखन की कला शौक़ ही सही पर, मन कलाकार को कलाकार बनाने के लिए काफ़ी हैं। आधुनिक समय में भागदौड़ भरी दिनचर्या में योग एवं आयुर्वेद को अमूल्य उपहार मानती हैं।