
NRI Herald
मन का मंथन !
लोकेश शर्मा जी द्वारा रचित सुंदर कविता - NRI हेराल्ड ऑस्ट्रेलिया द्वारा प्रकाशित, 11 September 2021
मन की मधानी के मंथन में
विष भी है और अमृत भी !
सोच के सर्प का प्रबल जिस ओर
वैसा ही मानव का स्वभाव
या देव है
अथवा असुर !
विचार हैं
बल मन का !
खींचे उस छोर
मनुष्य चाहे जिस ओर !
विवेक जागृत होता चेतना से
यदि लें निर्णय सचेत चित से !
विषय का चिंतन ही जन्म देता
मन के विकार को !
बांधे वो आसक्ति से
सब के संसार को !
सहायक है
एकाग्रता ध्यान में
किंतु कठिन है
वचनबद्धता जीवन के काल में !
अनुशासन हो नियम में
और दृढ़ता हो कर्म में !
फिर हों विजयी ,
कर मन को वश में !

लोकेश शर्मा जी की पैदाइश दिल्ली और स्कूली शिक्षा हिमाचल प्रदेश की राजकीय पाठशाला से हिंदी माध्यम में प्राथमिक एवम् वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा से है, उसके उपरांत औषधी विज्ञान में स्नातक प्राप्त करके उसी क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया में एक मल्टीनैशनल फार्मा कंपनी में कार्यरत हैं , स्वयं को एक भाषा प्रेमी मानते हैं, हिंदी, उर्दू, डोगरी, बंगाली, हरियाणवी, पंजाबी बखूबी बोल लेते हैं. शब्दों का विश्लेषण कर भाषा को समजने का प्रयास करना पसंद है , मानते है, संस्कृत के ही शब्द हर भाषा में मिलते हैं. गीता ज्ञान को जीवन का मार्ग दर्शक बना के आगे बड़ते है.